हजारो साल पुरानी सभ्यता और अनंत काल पुरानी संस्कृति वाला हमारा देश भारत जिसे हम सब भारतवासी भारत माता, माँ भारती जैसे उपनामों से सुशोभित करते हैं। उस भारत देश की महान संस्कृति जिसमें एक औरत को हम कभी दुर्गा, कभी लक्ष्मी कभी माँ सरस्वती तो कभी चंडी का स्वरूप मानते हैं, हमारे यहाँ लड़कियों से पैर नहीं छुवाते क्योंकि कहते हैं, कि लड़कियां बेटियां होती हैं और बेटियां माँ लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं।

लेकिन क्या हो रहा है आज इस देश में, आखिर क्यों भूल गए हम अपनी जड़ें, क्यों भूल गए हम के हम क्या हैं, आज जब छोटी-छोटी बच्चियां जिन्हें अपना नाम तक लेना नही आता जो इतनी मासूम हैं, की उनको देख कर जानवरों में भी मानवता की चमक आ जाये, फिर कौन हैं वो लोग जो इन मासूम फूलों को कुचलने में अपनी शान समझते हैं, कौन हैं वो जिनके कारण कभी निर्भया, कभी आसिफा तो कभी कोई और, छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर 80 90 साल की बूढ़ी औरतों तक के जिस्म को नोच खाते हैं वे लोग।

कौन है ये लोग? कहां से आते हैं ये लोग? ये लोग क्या हमारे आस-पास हमारे बीच नहीं है? आखिर क्यों करते हैं ऐसा ये लोग? कहाँ से आ जाती है लोगों में इतनी हैवानियत? इन सब सवालों के जवाब हमें खुद ढूंढने होंगे। देखो अपने आस पास क्या हम में से ही कोई तो नही? और अगर हाँ तो क्यों????
कहीं इसलिए तो नही क्योंकि शायद हम सोचते हैं बहोत गलत हुआ पर अच्छा है, मेरी बेटी मेरी बहन उस जगह नहीं थी। किसी लड़की को कोई हैवान देख रहा है, घूर रहा है, छेड़ रहा है, परेशान कर रहा है, तो हम कहते हैं मेरी नहीं है मुझे क्या? मेरी नहीं है मैं क्यों बोलूं? कोई कुछ नहीं बोल रहा कोई कुछ नहीं कर रहा तो मैं क्यो बोलू मैं क्यों करूं? मुझे क्या???????????????
और जब उसकी इज्जत उसकी जिंदगी उसका आत्मसम्मान सब तार-तार कर दिया जाता है तो हम निकल पड़ते हैं मोबत्तियाँ लेकर, हाथों में बड़े-बड़े बैनर लेकर जिनमे कुछ बड़े-बड़े नारे लिखे होते हैं, चिल्लाते हैं, शोर मचाते हैं, चक्का जाम कर देते हैं और ऐसा करने वाले दरिंदो(बलात्कारियों) के लिए मौत की सजा की मांग करते हैं, संसद में हंगामा होता है, अखबारों में बड़ी-बड़ी लाइनें लिखी जाती हैं, न्यूज़ चैनलों पर लंबी-लंबी बहस की जाती है, और फिर सब शांत सब अपने अपने काम पर लग जाते हैं, फिर वही मुझे क्या?
क्या वो सजा जो हम उन दरिंदो के लिए मांग रहे हैं, उसके असल हकदार हम सब खुद नहीं है? हाँ हम सब देखो खुद को तुमने क्यों नहीं तब आवाज उठाई जब वो उसको घूर रहा था, तुम तब क्यों चुप थे जब वो उसे छेड़ रहा था परेशान कर रहा था, क्यों तुमने तब कुछ नहीं किया जब वो ऐसा करने की हिम्मत कर रहा था, अगर तुम तब चुप थे, तो तुमको कोई हक कोई अधिकार नहीं है अपनी खुद की बेटी या बहन के लिए इंसाफ मांगने का। जिस तरह तुम तब मुस्कुरा रहे थे, मजे ले रहे थे, वही तब भी करना जब उस जगह तुम्हारी अपनी बेटी, अपनी बहन हो। क्योंकि जब वो किसी और कि बेटी, किसी और कि बहन थी तब वो तुम्हारे लिए वो दूसरे धर्म की थी, वो दूसरे जाति की थी वो दूसरे शहर, दूसरे राज्य की थी तो फिर उस वक्त भी मत रोना जब वो तुम्हारी अपनी बेटी हो, तुम्हारी अपनी बहन हो।
आज हम लड़कियों से बोलते हैं घर से बाहर मत निकलो, हम कहते हैं किसी से बात मत करो, चेहरा ढक के रखो, घूंघट डाल के रहो, हिजाब/नकाब पहन के बाहर निकला करो क्योंकि लोगों की नजरें खराब हैं, अरे तो जिनकी नजर खराब है उनकी आंख को फोड़ो ना क्यों उसे सजा दे रहे हो जिसकी कोई गलती नहीं है। क्यों हम उनको नहीं सिखाते की लड़की टंच माल नहीं बल्कि माँ का स्वरूप है, क्योकि नहीं सिखाते के उसके बदन को नही उसके पैरों की ओर नजरें रखो क्योकि वो बेटी है और हमारी संस्कृति में बेटी माँ लक्ष्मी का स्वरूप होती है, वो बहन है और बहन माल नहीं जिम्मेदारी होती है।

याद है ना, ये वही देश है, जहाँ जब श्री राम को माता सीता के अपहरण के बाद जंगल में उनके आभूषण(गहने) मिले थे तो उन्होंने लक्ष्मण से पूछा कि, “क्या तुम पहचानते हो ये तुम्हारी भाभी के ही आभूषण हैं ना?” तो लक्षमण जी जवाब देते हैं कि, “भैया मैं तो सिर्फ भाभी के पैरों में पहने जाने वाले नूपुर(बिछिया) को ही पहचानता हूँ, क्योकि मैंने अपनी भाभी के सिर्फ चरण ही देखे हैं।” आखिर क्यों और कैसे खत्म हो गई हमारी वो महान संस्कृति। आज हम कहते है कि,”लड़के है, लड़कों से गलतियां हो जाती हैं।” आखिर क्यों?
और आखिर में हमने क्यों अपनी बेटियों को कमजोर बना रखा है, क्यों हम उनको बार-बार अहसास दिलाते हैं के वो कुछ नही कर सकती, आज हमारी बेटियों की आदर्श कौन हैं, वो जिनको टीवी पर देखते तो हम सभी हैं, पर सबके सामने नहीं, मैं यहाँ किसी का भी नाम नहीं लूंगा, पर क्या इसमें गलती हम सबकी नहीं है कि, आज हम उनको रानी लक्ष्मी बाई, वीरांगना उदा बाई, बेगम हजरत महल, चाँद बीबी, रानी दुर्गावती, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, माँ दुर्गा और चंडी जैसा बनने के लिए प्रेरित नहीं करते। क्यों हमारी बेटियां आज उनको आदर्श मान बैठी हैं जिनका नाम भी चार लोगों के बीच लेते हुए असहज महसूस होता है। क्यो नही सिखाते हम उन्हें कि तुम शक्ति हो, तुम वीरता का पर्याय हो तुम अजेय हो।
आखिर क्यों? ढूंढिए खुद में इस क्यों का जवाब क्योंकि जब तक इस क्यों का जवाब नही मिल जाएगा हमारी माँ भारती अपनी बेटियों की लाशों को हाथ में लिए यूँ ही रोती रहेगी।